Tuesday, January 29, 2013

21. ग़ज़ल : जो भस्म हो चुका वो



जो भस्म हो चुका वो , लकड़ा जलेगा क्या ?
मुरझा चुका जो गुल वो , फिर से खिलेगा क्या ?
 है पास खुद ही जिसके , तंगी-कमी वहाँ ,
इनकार के सिवा कुछ , माँँगे मिलेगा क्या ?
 हाथी पसीना अपना , छोड़े जहाँ , वहाँ ,
चीटों  के ठेलने से , पर्वत हिलेगा क्या ?
 तलवार से भी जिसकी , उधड़े न खाल भी ,
नाखून से उस इंसाँ , का मुँह छिलेगा क्या ?
 जिसने कभी ज़मींं पर , पाँवोंं को ना रखा ,
अंगार-ख़ार पे वो , पैदल चलेगा क्या ?
 आते ही जिसके गुंचे , चुन लोग नोच दें ,
वो पेड़ तुम बताओ , फिर भी फलेगा क्या ?
 औलाद का न अपनी , जो पेट भर सके ,
सौग़ात में उसे इक , हाथी चलेगा क्या ?
 -डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...