Wednesday, January 16, 2013

8. ग़ज़ल : जूलियट सी हीर सी......


जूलियट सी , हीर सी , लैला के जैसी प्रेमिका ।।
इस ज़माने में कहाँ पाओगे ऎसी प्रेमिका ।।1।।
क़समोंं वादों पर यक़ीं यूँ ही नहीं करती कभी ,
है चतुर, चालाक, ज्ञानी आजकल की प्रेमिका ।।2।।  
बच नहीं सकता है अब आशिक़ बहाने से किसी , 
जिससे करती प्यार करती उससे शादी प्रेमिका ।।3।।
बेवफ़ा आशिक़ को अब माफ़ी न देती दोस्तों ,
अब सबक सिखला के बदला खूब लेती प्रेमिका ।।4।।
एक आशिक़ छोड़ दे तो ख़ुदकुशी करती नहीं ,
दूसरे से इश्क़ को तैयार रहती प्रेमिका ।।5।।
पहले आशिक़ कि नज़र से देखती थी ये जहाँ ,
अब तो चील और गिद्ध जैसी आँख रखती प्रेमिका ।।6।।
इश्क़ में जिस्मों के रिश्तों को भी देती अहमियत ,
अब न दक़्यानूस , शर्मीली न छुई-मुई प्रेमिका ।।7।।
अब तो मुँँह बोले बहन-भाई पे शक़ लाज़िम हुआ ,
कितने ही तफ़्तीश में निकले हैं प्रेमी प्रेमिका ।।8।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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