मुझको वो बच्ची
लगती है ।।
सचमुच ही अच्छी
लगती है ।।
ख़ूब पकी है और मधुर बस ,
दिखने में कच्ची
लगती ।।
यों अंदाज़े बयाँ है उसका ,
झूठी भी सच्ची
लगती है ।।
शेरों जैसी होकर भी वो ,
गैया की बच्छी लगती है ।।
शेरों जैसी होकर भी वो ,
गैया की बच्छी लगती है ।।
ठहरी हिंद महासागर सी ,
गंगा सी बहती लगती
है ।।
चलती है तो दिखती हिरनी ,
तैरे तो मच्छी लगती है ।।
चलती है तो दिखती हिरनी ,
तैरे तो मच्छी लगती है ।।
अक़्ल से लन्दन-वाशिंगटन पर ,
दिल से नई-दिल्ली
लगती है ।।
मेरी अच्छी से भी अच्छी ,
चीज़ उसे रद्दी लगती है ।।
मेरी अच्छी से भी अच्छी ,
चीज़ उसे रद्दी लगती है ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
2 comments:
nice...
धन्यवाद ! babul जी !
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