Monday, January 14, 2013

6. ग़ज़ल : मुझको वो बच्ची..............


मुझको वो बच्ची लगती है ।।
सचमुच ही अच्छी लगती है ।।
ख़ूब पकी है और मधुर बस ,
दिखने में कच्ची लगती ।।
 यों अंदाज़े बयाँ है उसका ,
झूठी भी सच्ची लगती है ।।
शेरों जैसी होकर भी वो ,
गैया की बच्छी लगती है ।।
 ठहरी हिंद महासागर सी ,
गंगा सी बहती लगती है ।।
चलती है तो दिखती हिरनी ,
तैरे तो मच्छी लगती है ।।
 अक़्ल से लन्दन-वाशिंगटन पर ,
दिल से नई-दिल्ली लगती है ।।
मेरी अच्छी से भी अच्छी ,
चीज़ उसे रद्दी लगती है ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...