Wednesday, January 9, 2013

2. ग़ज़ल : पूछ काम कितना





  पूछ काम कितना और क्या न करना पड़ता है ।।

  फिर भी रूखी - सूखी से पेट भरना पड़ता है ।।1।।

  फ़स्ल की कहीं कोई भी नहीं कमी लेकिन ,

  अब भी कुछ ग़रीबों को घास चरना पड़ता है ।।2।।

  अपने हक़ की ख़ातिर अब इस निज़ाम में अक्सर ,

  बात - बात पर अनशन , धरना ; धरना पड़ता है ।।3।।

  कोई भी बुलंदी पे घर नहीं बना सकता ,

  चाँद पर पहुँचकर सबको उतरना पड़ता है ।।4।।

  हद न पार करने की सीख के लिए शायद ,

  रावणों को ऋषि बन सीताएँ हरना पड़ता है ।।5।।

  कृष्ण हों, सुदामा होंं , गाँँधी होंं या ओसामा ,

  जन्म जो भी लेता है , उसको मरना पड़ता है ।।6।।

  क्या करें ख़ुशामद में अपने हब्शी आक़ा को ,

  नौकरों को गोरा अँँग्रेज़ कहना पड़ता है ।।7।।

  सिर्फ़ इक रिझाने के वास्ते नहीं सजते ,

  कुछ लिहाज़ रखने को भी सँवरना पड़ता है ।।8।।

  हैंं कई ख़ुदा का भी ख़ौफ़ जो नहीं खाते ,

  रस्मन अपने आक़ा से उनको डरना पड़ता है ।।9।।

  दूसरों के खाने से भूख मिट नहीं सकती ,
  अपना पेट भरने को ख़ुद को चखना पड़ता है ।।10।।

     -डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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