हँस-हँस के करे माफ न रो-रो के सज़ा दे ॥
अब हिज़्र का ग़म मुझको तो मिलने का मज़ा दे ॥
कल
चाह थी मिल जाती रे जीने से रिहाई ,
अब
चाहूँ कि रब मुझको कभी भी न क़ज़ा दे ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...
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