Friday, January 11, 2013

ग़ज़ल : 4 - शराब पीना है ॥


  मस्त हो आज तो ख़ुम भर , शराब पीना है ।।
  जाके मैख़ाने नहीं घर , शराब पीना है ।।1।। 
  हर किसी ग़म की दवा जाम ही अगर है तो ,
  हमको बोतल ही उठाकर , शराब पीना है ।।2।। 
  दुनिया कहती है बुरा ही शराबनोशी को ,
  इसलिए छुप के सही पर , शराब पीना है ।।3।। 
  जौ की , अंगूर की , महुए की , कच्ची या पक्की ,
  आज़माइश के लिए हर , शराब पीना है ।।4।।
  फ़ाख़्ता होश न फिर लौट के चले आएँ  ,
  इसलिए मुझको बराबर , शराब पीना है ।।5।।
  जाम का दौर चले शाम से जो शब भर भी ,
  मुँह सुबह होते ही धोकर , शराब पीना है ।।6।।
  लोग ले नाम ख़ुदा-रब का ज़ह्र पी जाते ,
  हमको अल्लाह-ओ-अक़बर , शराब पीना है ।।7।।
  इक ग़ुज़ारिश है अगर आपकी इजाज़त हो ,
  आपके साथ बिरादर , शराब पीना है ।।8।।
  क्यूँ पियाले को लगाते हो मुँह से चम्मच लो ,
  तुमको मानिंदे दवा गर , शराब पीना है ।।9।।
  आज के बाद न होठों से फिर लगाऊँगा ,
  आज सिर पर ये क़सम धर , शराब पीना है ।।10।।
  -डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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