Saturday, January 19, 2013

12. ग़ज़ल : मत वही गुजरे ज़माने


मत वही गुज़रे ज़माने याद कर रोया करो ।।
दौर जो चालू है उसके साथ में दौड़ा करो ।।1।।
अपने सीधे सादेपन को इक तरफ फेंको कहीं ,
होशियारी चालबाज़ी के हुनर सीखा करो ।।2।।
सच के कहने से अगर पड़ते हों लाले जान के ,
फिर तो बख़ुदा बेतअम्मुल झूठ ही बोला करो ।।3।।
दिल को दहला पिघला दें ऐसे न मंज़र देखिए ,
आँख को दिलकश नज़ारों पे ही अब रोका करो ।।4।।
दुश्मनों से आप खूँ का खेल खुलकर खेलिए ,
पीठ में यारों की ख़ंजर मत मगर घोंपा करो ।।5।।
इस ज़माने में बनावट और दिखावा ख़ास है ,
काटना चाहे न लेकिन ज़ोर से भौंका करो ।।6।।
रँग रहे तेज़ी से शहरी रंग में अब गाँव भी ,
तुम भी धोती छोड़ दो फ़ुलपेंंट ही पहना करो ।।7।।
लीक पर तो सब ही चलते हैं अगर तुम हो अलग ,
तो गुलों की फ़स्ल रेगिस्तान में पैदा करो ।।8।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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