Sunday, January 27, 2013

मुक्तक : 7 - औरतों सा सख़्त ग़म में


औरतों सा सख़्त ग़म में भी सुबुकने ना दिया ।।
सर किसी क़ीमत पे मैंने अपना झुकने ना दिया ।।
मुझको लँगड़ा कहने वालों के किये यूँँ बंद मुँँह ,
मैंने मंज़िल पर भी आकर ख़ुद को रुकने ना दिया ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 


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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...