औरतों सा सख़्त ग़म में भी सुबुकने ना दिया ।।
सर किसी क़ीमत पे मैंने अपना झुकने ना दिया ।।
मुझको लँगड़ा कहने वालों के किये यूँँ बंद मुँँह ,
मैंने मंज़िल पर भी आकर ख़ुद को रुकने ना दिया ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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