ख़ूब ठहरा बस अब तो चलने दो ।।
अपने अरमान मत मसलने दो ।।1।।
शम्अ की आग मुझको दे ठंडक ,
हूँ शरारा बशौक़ जलने दो ।।2।।
सूखे , पतझड़ में काट ले जाना ,
फ़स्ले गुल है अभी तो फलने दो ।।3।।
नर्म लफ़्ज़ों का ख़ूब असर देखा ,
मुझको लह्ज़ा मेरा बदलने दो ।।4।।
लोग तक़्दीर का कहें मारा ,
मुझको तक़्दीर को कुचलने दो ।।5।।
भूलने को तलाक बस उनको ,
एक कमरे से मत निकलने दो ।।6।।
दोस्त भी कर रहे दग़ाबाज़ी ,
दुश्मनों को भी ख़ूब छलने दो ।।7।।
जो हुआ सो हुआ करें अब क्या ?
हमको मलना है हाथ मलने दो ।।8।।
अपने दुश्मन से अपने दिल में बस ,
सर्द , बदले की आग जलने दो ।।9।।
ज़िंदगानी है ख़ुशनुमा तो फिर ,
जितना टलती है मौत टलने दो ।।10।।
दुश्मनों को भी ख़ूब छलने दो ।।7।।
जो हुआ सो हुआ करें अब क्या ?
हमको मलना है हाथ मलने दो ।।8।।
अपने दुश्मन से अपने दिल में बस ,
सर्द , बदले की आग जलने दो ।।9।।
ज़िंदगानी है ख़ुशनुमा तो फिर ,
जितना टलती है मौत टलने दो ।।10।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
2 comments:
बहुत सुन्दर...
धन्यवाद ! Ghanshyam kumar जी !
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