ताबूत एक पुख़्ता इक शानदार तुर्बत ॥
इक क़ीमती कफ़न कुछ शाने उठाने मैयत ॥
कब से जुटा रखा है अपनों ने साजो-सामाँ ,
मैं ख़ुद भी मुंतज़िर हूँ कब आये वक़्त-ए-रुख़सत ॥
[तुर्बत =समाधि , क़ब्र / मुंतज़िर =प्रतीक्षारत ]
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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1 comment:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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