अपने आँसू कहीं छुपा दूँगा
॥
वो जब आएँगे मुस्कुरा
दूँगा ॥
हाल होते हैं पूछने भर
को ,
ठीक है , ठीक हूँ , बता दूँगा
॥
उनकी रातों की रोशनी ख़ातिर
,
अपने घर को दिया बना दूँगा
॥
करलें शक़ मुझपे कुछ छिपाने
का ,
ख़ाक मुट्ठी की कल दिखा
दूँगा ॥
तूने क्यों ख़ुदकुशी की
ज़ुर्रत की ?
तुझको जीने की मैं सज़ा
दूँगा ॥
इन लतीफ़ों को क्या सज़ा
दूँ मैं ?
सुन के आँखों को डबडबा
दूँगा ॥
बेवफ़ा हैं वो कैसे उनको
मैं ,
फूलने-फलने की दुआ दूँगा ॥
बोझ अपना न उठ सका जिस
दिन ,
ख़ुद को दुनिया से ही उठा
दूँगा ॥
-डॉ. हीरालाल
प्रजापति
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