Wednesday, July 30, 2014

मुक्तक : 592 - इक बार हमने सचमुच



इक बार हमने सचमुच इतनी शराब पी थी ॥
इक घूँट में दो प्यालों जितनी शराब पी थी ॥
यारों का दोस्ती की सर पर क़सम था धरना ,
फिर होश ना रहा कुछ कितनी शराब पी थी ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...