Friday, July 4, 2014

मुक्तक : 566 - डूब चलों की गोद में


डूब चलों की गोद में लाकर साहिल दे दें ॥
पथभ्रष्टों के पाँव तले बस मंज़िल दे दें ॥
सच कहता हूँ जान बूझकर या भूले गर ,
तुम जैसे हम जैसों को अपना दिल दे दें ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

संजय भास्‍कर said...

वज़नदार है.

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! संजय भास्कर जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...