Thursday, July 10, 2014

मुक्तक : 572 - पर्वत होकर चलना



( चित्र Google Search से साभार )

पर्वत होकर चलना चाहूँ ।।
पानी बनकर जलना चाहूँ ।।
है अजीब , नामुमकिन लेकिन ,
बिन पिघले ही ढलना चाहूँ ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...