ग़ज़लों में आँसू
बोता हूँ ॥
लेकिन तुझको
ना रोता हूँ ॥
तेरी भारी भरकम
यादें ,
फूलों सी दिल में ढोता हूँ ॥
तेरा नाम भजन है मुझको ,
मैं उसका रट्टू
तोता हूँ ॥
इक तेरा क्या
हो बैठा मैं ,
और किसी का
कब होता हूँ ?
नींद नहीं आती
है मुझको ,
सोने को बेशक़
सोता हूँ ॥
तू मुझमें गुम शायद होता ,
मैं तुझमें
ख़ुद को खोता हूँ ॥
ग़म में डूबा रहकर भी मैं ,
मै में लगाता कब गोता हूँ ?
ग़म में डूबा रहकर भी मैं ,
मै में लगाता कब गोता हूँ ?
-डॉ. हीरालाल
प्रजापति
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