Thursday, July 24, 2014

147 : ग़ज़ल - ग़ज़लों में आँसू


ग़ज़लों में आँसू बोता हूँ ॥
लेकिन तुझको ना रोता हूँ ॥
तेरी भारी भरकम यादें ,
फूलों सी दिल में ढोता हूँ ॥
तेरा नाम भजन है मुझको ,
मैं उसका रट्टू तोता हूँ ॥
इक तेरा क्या हो बैठा मैं ,
और किसी का कब होता हूँ ?
नींद नहीं आती है मुझको ,
सोने को बेशक़ सोता हूँ ॥
तू मुझमें गुम शायद होता ,
मैं तुझमें ख़ुद को खोता हूँ ॥
ग़म में डूबा रहकर भी मैं ,
मै में लगाता कब गोता हूँ ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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