Friday, July 18, 2014

मुक्तक : 581 - याँ मुफ़्त वाँ नक़द


याँ मुफ़्त वाँ नक़द कहीं बग़ैर ब्याज उधार ।।
महँगी कहीं कहीं पे सस्ती चीज़ें बेशुमार ।।
मुँहमाँगी क़ीमतें ले हाथ में फिरे हैं रोज़ ,
मिलता नहीं कहीं जहाँ में प्यार का बज़ार ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...