Tuesday, July 22, 2014

मुक्तक : 588 - बस उछल-कूद



बस उछल-कूद और गंदे नाच गाने ॥
हर तरफ़ बेखौफ़ बढ़ते नंगियाने ॥
कौन सी तहज़ीब का ये दौर आया ,
कहाँ ले जा रहा कोई न जाने ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...