Thursday, July 3, 2014

मुक्तक : 565 - धुर-धधकती गर्मियों में



धुर-धधकती गर्मियों में बर्फ़ के टुकड़े सी वो ॥
कड़कड़ाती सर्दियों में ऊन के कपड़े सी वो ॥
पहले साँसों की तरह आती थी जाती थी मगर ,
अब नहीं मिलती है ढूँढे कुम्भ के बिछड़े सी वो ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...