बहुत से लोग पेंगें मारने
लगते हैं झूलों में ।।
कुछ इक जाकर उछलने-कूदने
लगते हैं फूलों में ।।
समंदर हम से ग़म के बूँद
भी पाकर ख़ुशी की सच ,
लगाने लोट लगते हैं गधों
की तरह धूलों में ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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