Saturday, July 19, 2014

मुक्तक : 582 - शायद लगेगी तुमको


शायद लगेगी तुमको मेरी ख़्वाहिश अजब है ।।
मानो न मानो मुझको सच मगर ये तलब है ।।
कर दूँ तमाम काम ग़रीबों के मुफ़्त पर ,
ग़ुर्बत मेरी ही मुझसे चिपकी छूटती कब है ?
( ग़ुर्बत =दरिद्रता ,कंगाली )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

Pratibha Verma said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Pratibha Verma जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...