Friday, July 25, 2014

148 : ग़ज़ल - उसका जीवन सुधर गया


उसका जीवन सुधर गया होता ॥
मरने से कुछ ठहर गया होता ॥
तैरना जानता तो बिन कश्ती -
और पर बिन भी तर गया होता ॥
मुझसे वो बोलते तो मुश्किल क्या ,
ग़ैर मुमकिन भी कर गया होता ॥
ज़िंदगी से न तंग होता तो ,
मौत से मैं भी डर गया होता ॥
मैं भी परदेश से दिवाली पर ,
काश ! होता तो घर गया होता ॥
पोल उसकी न खुल गई होती ,
क्यों वो दिल से उतर गया होता ?
तह में सूराख़ उस घड़े की था ,
वर्ना बारिश में भर गया होता ॥
ब्रह्मचारी था वर्ना वो तुझपे ,
तुझको तकते ही मर गया होता ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

12 comments:

Devendra Sagar said...

अति उत्तम जी

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (26-07-2014) को ""क़ायम दुआ-सलाम रहे.." (चर्चा मंच-1686) पर भी होगी।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! bhavnao ka sagar जी !

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! मयंक जी !

Unknown said...

बहुत खूब !!

अभिषेक शुक्ल said...

Behtateen.......

Pratibha Verma said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Lekhika M Shlok जी !

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! abhishek shukla जी !

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Pratibha Verma जी !

Asha Joglekar said...

बढिया गज़लष

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! आशा जोगलेकर जी !

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