Saturday, July 12, 2014

140 : ग़ज़ल - नाम पर ग़ज़लों के पैरोडी



नाम पर ग़ज़लों के पैरोडी , हजल मत दो ॥
चाहिए मुझको असल कोरी नक़ल मत दो ॥
छोड़ देंगे देखना अधबीच में जाकर ,
माहिरों के काम में बेजा दख़ल मत दो ॥
बिन जगाए गर किसी सोते को काम अपना ,
हो सके तो नींद में उसकी ख़लल मत दो ॥
खा गया ग़ुर्बत में जो काजू समझ पोची-
मूँगफलियाँ , अब रईस हूँ आजकल मत दो ॥
फिर न कहना चाय-पानी तक नहीं पूछा ,
यों मेरी देहलीज़ को बस छू के चल मत दो ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

2 comments:

Vinay said...

नाम पर ग़ज़लों के पैरोडी , हजल मत दो ॥
मुझको लाज़िम है असल कोरी नकल मत दो ॥

छोड़ देंगे देखना अधबीच में जाकर ,
माहिरों के काम में बेजा दखल मत दो ॥

गर जगाए बिन चले न तो किसी सूरत ,
नींद में हरगिज़ किसी की भी ख़लल मत दो ॥

waah wa!

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Vinay Prajapati जी ।

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...