Wednesday, July 23, 2014

मुक्तक : 590 – मुझपे ज़ाहिर न कभी


मुझपे ज़ाहिर न कभी क्यों ये अपनी ख़्वाहिश की ?
हक़ से क्यों हुक़्म सुनाया न क्यों गुज़ारिश की ?
शर्म क्यों आयी तुझे जान माँगने में मेरी ?
क़त्ल की क्यों ऐ मेरी जान तूने साज़िश की ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...