Wednesday, July 9, 2014

मुक्तक : 570 - कोयलें अपनी मधुर


कोयलें अपनी मधुर आवाज़ को लेकर !
चुप हैं सब साज़िंदे पने साज़ को लेकर !
क्या हुआ मग़रूर से मग़रूर सब गुमसुम -
क्यों न आज इतराते फ़ख्र-ओ-नाज़ को लेकर ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

No comments:

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...