Tuesday, July 22, 2014

मुक्तक : 589 - लिए उड़ानों की हसरतें


लिए उड़ानों की हसरतें जंगलों में पैदल सफ़र करें ॥ 
हुक़ूमतों की लिए तमन्ना ग़ुलामियों में बसर करें ॥ 
न जाने ख़ुद ख़ताएँ हैं या नसीब की चालबाज़ियाँ ,
कि हम तमन्नाई क़हक़हों के हमेशा रोना मगर करें ॥ 
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...