लिए उड़ानों की हसरतें जंगलों में पैदल सफ़र करें ॥
हुक़ूमतों की लिए तमन्ना ग़ुलामियों में बसर करें ॥
हुक़ूमतों की लिए तमन्ना ग़ुलामियों में बसर करें ॥
न जाने ख़ुद ख़ताएँ हैं या नसीब की चालबाज़ियाँ ,
कि हम तमन्नाई क़हक़हों के हमेशा रोना मगर करें ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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