Monday, July 21, 2014

मुक्तक : 586 - ज़िन्दगी यूँ ही ग़मे


ज़िन्दगी यूँ ही ग़मे गेती की मारी है ॥
जिस्म भी तक्लीफ़ से हल्कान भारी है ॥
उसको चारागर भी चाहेंं ज़ह्र देना पर ,
उनपे भी क़ानून की तलवार तारी है ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...