Sunday, July 6, 2014

मुक्तक : 567 – गुल तो गुल गुलशन


गुल तो गुल गुलशन का गुञ्चा-गुञ्चा भी घबराया है ॥
तेरा चेहरा खिला-खिला क्यों ज़रा नहीं कुम्हलाया है ॥
तू तो ख़ुशबूदार है सबसे फिर भी क्यों बेफ़िक्र है तू ?
क्या तू जाने ? एक शख़्स याँ इत्र बनाने आया है ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...