Tuesday, July 1, 2014

मुक्तक : 563 - पूर्ण पृथ्वी जिसका आँगन



पूर्ण पृथ्वी जिसका आँगन हो गगन छप्पर ॥
एक इतना ही बड़ा अद्भुत बनाएँ घर ॥
विश्वजन चिरकाल तक आनंद से जिसमें ,
प्रेम से , ईमानदारी से रहें मिलकर ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

संजय भास्‍कर said...

बेहद उम्दा रचना और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई..

सच कहती पंक्तियाँ .
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डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! संजय भास्कर !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...