Tuesday, July 29, 2014

मुक्तक : 591 - घूँट दो घूँट भरते भरते


घूँट दो घूँट भरते भरते फिर पूरा भर भर रिकाब पीने लगे ॥
आबे ज़मज़म के पीने वाले हम धीरे धीरे शराब पीने लगे ॥
दर्दो तक्लीफ़ के पियक्कड़ थे पर तेरा हिज्रे ग़म न झेल सके ,
पहले पीते थे बाँधकर हद को बाद को बेहिसाब पीने लगे ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

No comments:

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...