Wednesday, July 9, 2014

मुक्तक : 571 - पाऊँ न आस्माँ


पाऊँ न आस्माँ बुलंदियाँ तो छुऊँगा ॥
ताक़त को अपनी सब समेट कर के उड़ूँगा ॥
मुर्ग़ा हूँ अपने पंख देखकर ही रहूँ ख़ुश ,
उनके लिए मगर मैं एक बाज़ बनूँगा ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...