Monday, July 14, 2014

141 : ग़ज़ल - गर्मी में अब्र की कब

गर्मी में अब्र की कब , ख़ैरात माँगता हूँ ?
मौसम में बारिशों के , बरसात माँगता हूँ ॥
तंग आ चुका घिसटते , उड़ने को पंख कब मैं ,
चलने के वास्ते बस , दो लात माँगता हूँ ॥
हैं पास तेरे नौ-दस , एकाध मुझको दे दे ,
कब तुझसे रोटियाँ मैं , छः सात माँगता हूँ ?
हक़ की करूँ गुजारिश , हक़ के लिए लड़ूँ मैं ,
कब भीख की तलब ? कब , सौग़ात माँगता हूँ ?
उम्मीदे-ख़ैरमक़्दम , ग़ैरों से कब मैं रक्खूँ ?
अपनों में बस ज़रा सी , औक़ात माँगता हूँ ॥
(अब्र=बादल  ; ख़ैरमक़्दम=स्वागत-सत्कार )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

8 comments:

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना बुधवार 16 जुलाई 2014 को लिंक की जाएगी...............
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! yashoda agrawal जी !

Unknown said...

बेहतरीन लिखा'

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! महेश कुशवंश जी !

Unknown said...

खूबसूरत पंक्तियाँ

Unknown said...

Waah lajawaab .....

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Anusha जी !

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Lekhika 'Pari M Shlok' जी !

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