गर्मी में अब्र की कब , ख़ैरात माँगता हूँ ?
मौसम में बारिशों के , बरसात माँगता हूँ ॥
तंग आ चुका घिसटते , उड़ने को पंख कब मैं ,
चलने के वास्ते बस , दो लात माँगता हूँ ॥
हैं पास तेरे नौ-दस , एकाध मुझको दे दे ,
कब तुझसे रोटियाँ मैं , छः सात माँगता हूँ ?
हक़ की करूँ गुजारिश , हक़ के लिए
लड़ूँ मैं ,
कब भीख की तलब ? कब , सौग़ात माँगता
हूँ ?
उम्मीदे-ख़ैरमक़्दम , ग़ैरों से कब मैं रक्खूँ ?
अपनों में बस ज़रा सी , औक़ात माँगता हूँ ॥
(अब्र=बादल ; ख़ैरमक़्दम=स्वागत-सत्कार )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
8 comments:
आपकी लिखी रचना बुधवार 16 जुलाई 2014 को लिंक की जाएगी...............
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
धन्यवाद ! yashoda agrawal जी !
बेहतरीन लिखा'
धन्यवाद ! महेश कुशवंश जी !
खूबसूरत पंक्तियाँ
Waah lajawaab .....
धन्यवाद ! Anusha जी !
धन्यवाद ! Lekhika 'Pari M Shlok' जी !
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