Wednesday, July 16, 2014

143 : ग़ज़ल - तुझको पाने को



तुझको पाने को न कल जी-जान से अड़ता ।।
ज़िंदगी का आज पड़ता ही नहीं पड़ता ।।1।।
या तो पक जाता है या फिर रोग से वर्ना ,
शाख़ से पत्ता हरा यूँ ही नहीं झड़ता ।।2।।
कुछ न कुछ टकराव के हालात होते हैं ,
हर किसी से कोई यों ही तो नहीं लड़ता ।।3।।
भीम के भी हाथ से दीवार में कीला ,
बिन हथौड़े के गड़ाये से नहीं गड़ता ।।4।।
टाट में पैबंद मख़मल का लगाओ मत ,
कोई भी लोहे में हीरे को नहीं जड़ता ।।5।।
कितना भी लोहा खरा हो सदियों तक लेकिन ,
रात-दिन पानी में रहकर सड़ता ही सड़ता ।।6।।
एक सुर पर्वत को नाटा कहते रहने से ,
बौने टीलों का कभी भी क़द नहीं बढ़ता ।।7।।
रात-दिन चूसा न होता तुमने जो मुझको ,
तुख़्म दिल में क्यों बग़ावत का मेरे पड़ता ?8।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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