वाँ तो दिन पे भी ढेर
सूरज हैं ,
और याँ शब पे इक चिराग़
नहीं ।
याँ पे भूखे भी लोग मर
जाएँ ,
और वाँ जह्र फाँक झाग
नहीं !
मुझको ज़िंदा ही फूँक पछताएँ
,
कैसे सिगरेट अब जलाएंगे
?
राख़ ठोकर से खूर गुस्साएँ
,
इसमें अब कोई आग-वाग नहीं
॥
सात पर्दों में असली सूरत
रख ,
तुम ज़माने में हो ख़ुदा
बजते ,
लाख चेहरे हैं एक चेहरे
पर ,
इक भी चेहरे पे कोई दाग़
नहीं !!
सच कहूँ तो ज़ुबाँ का हूँ
कड़वा ,
मीठा बोलूँ तो चापलूस
तभी
रेंकनें-भौंकने का आदी
मैं ,
कूकने का गले में राग
नहीं ॥
सबको अपना सा क्यों समझते
हो ?
क्या मज़ेदार बात करते
हो ?
मुझसे आसाँ सवाल बच्चों
से !
सोचते होगे याँ दिमाग़
नहीं ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
8 comments:
आपकी लिखी रचना शनिवार 15/02/2014 को लिंक की जाएगी...............
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
कृपया पधारें ....धन्यवाद!
धन्यवाद ! yashoda agrawal जी !
wah bhai bahut sundar ....aabhar apka .
धन्यवाद ! Naveen Mani Tripathi जी !
बहुत बढ़िया....धन्यवाद ......
धन्यवाद ! Aditi Poonam जी !
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आपने चित्र कमाल के रहते हैं अलग सबसे इस बार भी कुछ यूँ ही है
धन्यवाद ! Lekhika 'Pari M Shlok' जी !
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