Monday, February 17, 2014

मुक्तक : 483 - मुसाफ़िर कोई


मुसाफ़िर कोई हमसफ़र चाहता है ॥
सड़क के किनारे शजर चाहता है ॥
कि जैसे हो तितली को गुल की तमन्ना ,
मुझे भी कोई इस क़दर चाहता है ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...