Wednesday, February 5, 2014

मुक्तक : 466 - न सुनहरा स्वप्न बुनती


ना सुनहरा स्वप्न बुनती ना व्यथित होती ।।
न निरंतर जागती न अनवरत सोती ।।
आग मन की अश्रु जल से यदि बुझा करती ,
देखती कम आँख निःसंदेह बस रोती ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...