कोई हमराह नहीं कोई
क़ाफ़िला न रहा ॥
मिलने-जुलने का कहीं
कोई सिलसिला न रहा ॥
फिर भी हैरत है मुझे ऐसी बदनसीबी से ,
कोई ख़फ़गी न रही कोई
भी गिला न रहा ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...
4 comments:
sundar muktak , badhai aapko
धन्यवाद ! shashi purwar जी !
BEHAD UMDA !!
धन्यवाद ! Harsh Tripathi जी !
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