Wednesday, February 5, 2014

मुक्तक : 467 - कोई हमराह नहीं


कोई हमराह नहीं कोई क़ाफ़िला न रहा ॥
मिलने-जुलने का कहीं कोई सिलसिला न रहा ॥
फिर भी हैरत है मुझे ऐसी बदनसीबी से ,
कोई ख़फ़गी न रही कोई भी गिला न रहा ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...