Wednesday, February 12, 2014

मुक्तक : 476 - सारे कंकड़ वो


सारे कंकड़ वो बेशक़ीमती नगीने सा ।।
सब ही पतझड़ वही बसंत के महीने सा ।।
दुनिया गर एक खौफ़नाक दरिया तूफ़ानी ,
वो,लगाता जो पार लगता उस सफ़ीने सा ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...