Sunday, February 9, 2014

मुक्तक : 472 - क़तरा-क़तरा तेरी


क़तरा-क़तरा तेरी यादों में आँखों ने ढाया ।।
अश्क़ जब ख़त्म हो गए तो खूँ भी छलकाया ।।
राह देखी कुछ ऐसी तेरी दम-ए-आख़िर तक ,
पलकों को मरके भी खुल्ला रखा न झपकाया ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

Unknown said...

WAH .........WAH .LAAJAWAAB

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Harsh Tripathi जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...