क़तरा-क़तरा तेरी यादों में आँखों ने ढाया ।।
अश्क़ जब ख़त्म हो गए तो खूँ भी छलकाया ।।
राह देखी कुछ ऐसी तेरी दम-ए-आख़िर तक ,
पलकों को मरके भी खुल्ला रखा न झपकाया ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
■ चेतावनी : इस वेबसाइट पर प्रकाशित मेरी समस्त रचनाएँ पूर्णतः मौलिक हैं एवं इन पर मेरा स्वत्वाधिकार एवं प्रतिलिप्याधिकार ℗ & © है अतः किसी भी रचना को मेरी लिखित अनुमति के बिना किसी भी माध्यम में किसी भी प्रकार से प्रकाशित करना पूर्णतः ग़ैर क़ानूनी होगा । रचनाओं के साथ संलग्न चित्र स्वरचित / google search से साभार । -डॉ. हीरालाल प्रजापति
मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...
2 comments:
WAH .........WAH .LAAJAWAAB
धन्यवाद ! Harsh Tripathi जी !
Post a Comment