Saturday, February 22, 2014

मुक्तक : 488 - वो जेह्नोदिल में जो



वो जेह्नोदिल में जो बस आन बसा , जा न सका ।।
वो स्वाद हमने चखा जिसका मज़ा , जा न सका ।।
वो हो न पाया मयस्सर कहीं भी फिर पर उस -
शराबे वस्ल का ताउम्र नशा , जा न सका ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...