Wednesday, February 12, 2014

मुक्तक : 477 - देखने में ही नहीं


देखने में ही नहीं टूटा हुआ सा मैं ।।
दरहक़ीक़त ही तो हूँ फूटा हुआ सा मैं ।।
वज़्ह तुझको ही पकड़ने की तमन्ना में ,
दीन , दुनिया , ख़ुद से भी छूटा हुआ सा मैं ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...