Thursday, February 20, 2014

मुक्तक : 487 - झुका-झुका सर



झुका-झुका सर उठा-उठा कर निगाह करते हैं ।।
कभी-कभी कुछ बता-बता कर गुनाह करते हैं ।।
न जिसके क़ाबिल,न जिसके लायक मगर ख़ुदाई से ,
उसी को पाने की ज़िद उसी की वो चाह करते हैं ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...