Tuesday, February 25, 2014

मुक्तक : 491 - है गर तवील ज़िंदगी


( चित्र Google Search से साभार )
है गर तवील ज़िंदगी की तुझको सच में चाह ।।
दूँगा मैं तुझको सिर्फ़ोसिर्फ़ एक ही सलाह ।।
है क्योंकि हक़परस्त तू ले इसलिए ये मान ,
मत सुर्ख़ को कहना तू सुर्ख़,स्याह को न स्याह ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...