Thursday, February 27, 2014

मुक्तक : 494 - ताक़त के साथ-साथ



ताक़त के साथ-साथ में रखते हों शरफ़ भी ।।
क्या इस जहाँ में अब भी इस क़दर हैं हिम्मती ?
गर जानता हो कोई तो फ़ौरन बताये मैं –
महलों में उनको ढूँढूँ या खोजूँ कुटी-कुटी ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...