Wednesday, February 19, 2014

मुक्तक : 486 - पहले के जितने भी थे

पहले के जितने भी थे वो 
सारे ही अब बंद ।।
इश्क़-मुहब्बत फ़रमाने 
वाले छुईमुई ढब बंद ।।
क्या चुंबन क्या आलिंगन 
अब कर सब व्रीड़ाहीन ,
शर्म-हया-संकोच-लाज-
लज्जा-लिहाज़ सब बंद ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...