Wednesday, February 26, 2014

मुक्तक : 493 - हँसने की आर्ज़ू में


( चित्र Google Search से साभार )
हँसने की आर्ज़ू में ज़ार रो के मरे  है ॥
खा-खा के धोखा खामियाजा ख़ास भरे है ॥
अहमक़ नहीं वो नादाँ नहीं तो है और क्या ?
इस दौर में उम्मीदे वफ़ा जो भी करे है ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...