Sunday, February 23, 2014

119 : ग़ज़ल - जबकि दिल आ गया


जबकि दिल आ गया किसी पर है ।।
कैसे फिर कह दूँ हाल बेहतर है ?1।।
बस किसी और से तू कहना मत ,
बात हालाँकि ये उजागर है ।।2।।
उसको साबित किया गया है सच ,
पर वो झूठा-ग़लत सरासर है ।।3।।
आँख क्यों ख़ुद ब ख़ुद न झुक जाए ,
रू ब रू शर्मनाक मंज़र है ।।4।।
मुझसे पूछो न आशिक़ी है क्या ,
कैसे कह दूँँ कि दर्देसर भर है ?4।।
काम दमकल का बाल्टी से लूँ ,
जल रहा है जो ये मेरा घर है ।।5।।
नींद आए मगर न आएगी ,
जिसपे लेटा हूँ गड़ता पत्थर है ।।6।।
तुझसे बेहतर नहीं वो क्यों मानूँ ,
जब वो आगे है , तुझसे ऊपर है ?7।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (24-02-2014) को "खूबसूरत सफ़र" (चर्चा मंच-1533) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! मयंक जी !

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