Friday, February 14, 2014

कविता : कैसे सिगरेट अब जलाएंगे ?


वाँ तो दिन पे भी ढेर सूरज हैं ,
और याँ शब पे इक चिराग़ नहीं ।
याँ पे भूखे भी लोग मर जाएँ ,
और वाँ जह्र फाँक झाग नहीं !
मुझको ज़िंदा ही फूँक पछताएँ ,
कैसे सिगरेट अब जलाएंगे ?
राख़ ठोकर से खूर गुस्साएँ ,
इसमें अब कोई आग-वाग नहीं ॥
सात पर्दों में असली सूरत रख ,
तुम ज़माने में हो ख़ुदा बजते ,
लाख चेहरे हैं एक चेहरे पर ,
इक भी चेहरे पे कोई दाग़ नहीं !!
सच कहूँ तो ज़ुबाँ का हूँ कड़वा ,
मीठा बोलूँ तो चापलूस तभी
रेंकनें-भौंकने का आदी मैं ,
कूकने का गले में राग नहीं ॥    
सबको अपना सा क्यों समझते हो ?
क्या मज़ेदार बात करते हो ?
मुझसे आसाँ सवाल बच्चों से !
सोचते होगे याँ दिमाग़ नहीं ॥

-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

8 comments:

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना शनिवार 15/02/2014 को लिंक की जाएगी...............
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
कृपया पधारें ....धन्यवाद!

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! yashoda agrawal जी !

Naveen Mani Tripathi said...

wah bhai bahut sundar ....aabhar apka .

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Naveen Mani Tripathi जी !

Aditi Poonam said...

बहुत बढ़िया....धन्यवाद ......

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Aditi Poonam जी !

Unknown said...

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आपने चित्र कमाल के रहते हैं अलग सबसे इस बार भी कुछ यूँ ही है

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Lekhika 'Pari M Shlok' जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...