Wednesday, February 19, 2014

मुक्तक 485 - इक बूँद भर से कलकल


इक बूँद भर से कलकल आबे चनाब होकर ॥
भर दोपहर का ज़र्रे से आफ़्ताब होकर ॥
अपने लिए तो जैसा हूँ ठीक हूँ किसी को ,
दिखलाना चाहता हूँ मैं कामयाब होकर ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...