Tuesday, February 4, 2014

मुक्तक : 465 - अंदर थार मरुस्थल


अंदर थार मरुस्थल बाहर हिन्द महासागर सा तृप्त ।।
सूट-बूट में लगता ज्ञानी-चतुर-चपल पर है विक्षिप्त ।।
कितने अवसर पुण्य कमाने के मिलते हैं किन्तु तुरन्त-
लाभ हेतु रहता मानव प्रायः लघु-महा पाप संलिप्त ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

1 comment:

Unknown said...

VERY NICE ; VOICING OUT THE TRUTH

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...