अंदर थार मरुस्थल बाहर
हिन्द महासागर सा तृप्त ।।
सूट-बूट में लगता ज्ञानी-चतुर-चपल
पर है विक्षिप्त ।।
कितने अवसर पुण्य कमाने
के मिलते हैं किन्तु तुरन्त-
लाभ हेतु रहता मानव
प्रायः लघु-महा पाप संलिप्त ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...
1 comment:
VERY NICE ; VOICING OUT THE TRUTH
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